सतगुरू स्वरूप
पापा गए तो मॉं का सहारा था
चट्टान के मानिंन्द एक आसरा था
जब वह ढीली पड़ जातीं थीं
तो बाबाजी हिम्मत बँधाते थे
तेरा भाणां मीठा लागे वाला
सबक़ याद दिलाते थे
आहिस्ता कई बरस बीते,
उम्र ने भी अपनी करवट बदली
नाज़ुकता ने स्वास्थ्य सहलाया
गती में कुछ शीतलता आई
अचानक एक दिन वह ख़बर आई
सब ने दॉंतों तले ऊँगलियॉं दबाईं
बाबाजी हरदेव सिंह का हुआ चलाना
मॉं का दिल बन गया एक वीराना
जिस गुरुदेव से मिलती सदैव प्रेणना
उनका हुआ यकायक जहाँ से जाना
ठेस बहुत लग गई थी दिल को
फिर भी दुनिया से पड़ा नाता निभाना
दुख का समन्दर घेरे ह्रदय को
मुख पर हँसी फीकी सी आती
फिर एक दौर एैसा भी आया
दुख का अथाह समन्दर लाया
मॉं ने बिस्तर एैसा जा पकड़ा
फिर उठने का मौक़ा ही न आया
पीड़ा इतनी जो हम से देखी न जाती
मॉं का स्वर शांत था, नैनों से कुछ कह जाती
कुछ ही सप्ताह भर की बात थी
फिर नेत्र भी थम गए, ख़त्म हुई कहानी
मूँद ली सदा के लिए ऑंखें मॉं ने
तब कहीं तकलीफ़ से राहत पा पाईं
दर्द की तो तब बस हद ही हो गई
पहले बाबाजी और फिर मॉं चल बसीं
धीरज बँधाने हम सब को फिर एक दिन
सतगुरू माता सविंदर ख़ुद चल कर आंईं
बातें मॉं संग बिताए कई लम्हों की करके
यादों का पिटारा भर कर थी वह लाईं
ज़रा कुछ सुकून सा मिला था
एक अजब सा तनाव कम हुआ था
अचानक से अब लगता था मॉं उसी रूप में मिलेंगी
लेकिन वह चाहे अनचाहे बनी बस एक परछाईं
सम्भलने भर का ही कुछ समय मिला था
फिर सतगुरू माता ने भी ले ली बिदाई
राहत पाकर अपनी अस्वस्थ देह से
अब वह भी ईश्वरीय पनाह के भरोसे
सदा के लिए मुक्त आत्मा बन कर
सुदीक्षा बहन को वसीयत सौंप कर
निरंकारी जगत की माता बना कर
राहत से यह जहाँ को तज पाईं
अब है बेइन्तहा इस दुख से उभर कर
सुदिक्षा सतगुरू रूप में सब के लिए आईं
गुरबचन राजमाता की यह वंशज
हरदेव सविंदर की नन्ही कोमल कली
शहनशाह जी का यह नया अवतार
नारी शक्ती का चिन्ह लेकर आकार
नूतन विचार व न्यूनतम आधयतमिक्ता संग
करेगी शांती व एकता का फिर एकु प्रचार
गौरव है अब से वह हम सब के दिल की
जगत जंजाल से हमको यह लेगी तार
एक तू ही निरंकार।
एक तू ही निरंकार।
एक तू ही निरंकार।
सिकीलधी
Beautiful. 🙏🌹
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धन्यवाद पिन्की
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