एैसी एक वसीयत तुम कर जातीं
नाम मेरे तुम्हारे गुन कर जातीं
जिन से थी तुम्हारी पहचान एै मॉं
मैं बस तेरे आँगन की एक हूँ क्यारी
याद हैं आतीं बहुत ही मुझको
बातें तुम्हारी वह प्यारी प्यारी
जो थीं कभी सिखलाई तुमने
उन बातों पर दिल जाता बलिहारी
सिकीलधी
एैसी एक वसीयत तुम कर जातीं
नाम मेरे तुम्हारे गुन कर जातीं
जिन से थी तुम्हारी पहचान एै मॉं
मैं बस तेरे आँगन की एक हूँ क्यारी
याद हैं आतीं बहुत ही मुझको
बातें तुम्हारी वह प्यारी प्यारी
जो थीं कभी सिखलाई तुमने
उन बातों पर दिल जाता बलिहारी
सिकीलधी
Thanks.aisi vasiyat bahut inovative poem hai.your all tribute as mas se mahatma is heart touching.keeps on .
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Dhanyavaad Rachna.
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