Words emerge aplenty yet words fail the magnanimity of a Mother.
Read on this poet’s expression….
स्पंदन सांसों का तुम से ही
धमनी शिराओं में
रक्त का प्रवाह तुम से ही
जिस परमेश्वर को नहीं देखा
वो आस्था तुम से ही ।।
ये संभले हुए मेरे कदम
माँ, तुम से ही ।।
मेरा रुप, रंग, ये कद शरीर
सब, माँ तुम से ही ।।
मेरे मुख का पहला शब्द
माँ तुमसे ही हो
मेरा आचरण, व्यवहार, ये संस्कार
सब , माँ तुम से ही ।।
तुमने जाया है तो मैं हूँ
तुमने जाया और पिता का पहचान दी है
धूप छाओं, वर्षा शीत का पहचान दी है
तेरे ममता ने, तेरे आँचल ने
हर रोग दोष से रक्षा की है
अच्छे बुरे की सिख दी है ।।
माँ, तुम ही कहानी हो
तुम ही लोरी हो
मेरे ईश्वर, मेरे परमेश्वर तुम हो
मेरे गुरु, गुरुवेश्वर तुम ही हो ।।
तुम ही काव्य कविता
गद्य पद्य, सब तुम ही हो
तुम ही दोहा लोरा…
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बहुत ही खूबसूरत कविता है दुबारा पढ़ने को मिला।👌👌
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