The pain of the community is barely understood by others as people tend to notice only the opulent few.
चेटीचंड अब एक धार्मिक उत्सव ही नहीं ,सिंधु संस्कृति और अस्मिता का प्रतीक पर्व भी है ! लाजमी है कि आज के दिन देश को सिंधियों की कुर्बानी को जानने समझने की कोशिश करना चाहिए ।
उन्होनें कोई सवाल नहीं पूछा… ! ये भी नहीं , कि जिस सफर पर उन्हें भेजा जा रहा है , उसकी मंजिल कहाँ है । वे बस उठे , और चल दिये । ताकि आपकी आजादी की लड़ाई का आखिरी पन्ना लिखा जा सके । वे बस चल दिये, अपने खेत-मकान, जमीन-जायदाद अपने मंदिरों, पीरों-फकीरों ,अपने गली चैबारों ,अपनी नदियों ,अपने सहराओं को छोड़कर । वे जानते थे कि ये एक मुश्किल सफर होने वाला है और सफर में वे बस उतना ही समान अपने साथ रखना चाहते थे जितना जिंदा रहने के लिये जरूरी हो । अपनी किताबे अपनें गीत, लोरियाॅ, संगीत, बाजे सबकुछ जैसे एक ‘एक्स्ट्रा बैगेज‘ था इस सफर मे ।…
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