राखी वाला आया त्यौहार
घर में ज्यूँ आ गई हो बहार
बहन फुदकती भाई के गिर्द
सजाती थाली लिए स्नेह बिंदु
लाती राखी वाला लचीला धागा
चन्दन टीका, कुमकुम वाला सुहागा
अक्षत भी माथे पर भैया के लगाती
दीप जला मन उज्जवल करती
आरती रक्षक भ्राता की उतारती
उसकी लम्बी आयु की कामना करती
भाई का हित ह्रदय भीतर धर
मंगल धुन होंठों पर गाकर
बाँधती वह राखी वाला लचीला धागा
भाई की कलाई खिल उठती सौ भागा
भैया की मनमोहक मुसकान जी को भाती
जब उसके चहेते मिषठान का निवाला लाती
गद गद मन होता, अपने हाथों उसे खिलाती
राखी वाले लचीले धागे पर बलिहारी जाती
बन्धु उसका सखा सा भैया
जिसके संग बही जीवन नैया
दुलारता व अपना प्यार जताता
राखी वाली कलाई गर्व से निहारता
बहन चाहे छोटी हो या बड़ी
उसकी रक्षा का प्रण कर जाता
उसकी सुरक्षा का वचन निभाता
वर्ष दर वर्ष यह वचन दोहराता
बहना के चरण स्पर्श करके वह
देवी स्वरूप समक्ष शीश झुकाता
अजब यह रिश्ता बनाया हे ईश्वर
जिस पर स्वयं तू भी गौरव है करता
एक कच्चे से लचीले धागे से
स्नेह भरा अम्बार सा टपके
मधुरता रिश्तों की बहुत निराली
भाई बहन की सदा रहे ख़ुशहाली
बहन के चोंचले, भाई की तकरार
सौग़ात का माँगना वह हर बार
कभी वह रूठना और कभी मान जाना
ग़ुस्सा भूल एक दूजे संग अपनापन जताना
गले वो मिलना, रक्षा बन्धन मनाना
इसी को तो कहते हैं प्यार से प्यार निभाना ।।
सिकीलधी