रक्षा बन्धन

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याद है बचपन की अठखेली
वो पूछना एक दूजे से पहेली
खेल खिलौने अद्भुत न्यारे
गेंद व गुड़ीयॉं प्यारे प्यारे

वो रंग भरी लम्बी पिचकारी
ग़ुबारों में जल भर होली की तैयारी
वो छत पर खेलना छुपन छुपाई
बात बात पर करना लड़ाई

याद आते हैं मेरे भैया प्यारे,
वो दिल्ली के साँझ सखारे
वो फुलझड़ी व कई पटाखे
मिल कर हम सब करते धमाके

manu kuturu

मम्मी से वो शिकायत करना
शरारत से वो चोटी खींचना
डैडी के घर में घुसते ही
शराफ़त की वो मूरत बनना

साथ उठ सुबह पढ़ाई करना
इक दूजे संग दौड़ लगाना
नानी, बुआ के घर जाना
सिंघाड़े, चाट व छली खाना

सुन्दर नगर जा मिठाई लाना
ऐसेक्स फ़ार्म से चिकन ले आना
अम्माँ के संग संगत जाना
प्रभात फेरी की मौज मचाना

कहॉं लुप्त हो गए वो दिन
उम्र के बहाव में बह गए वो दिन
हम भाई बहन की दूर हुई मंज़िल
जीना सीख लिया एक दूजे बिन

आज रक्षा बन्धन के पावन दिन
रीटा माँगे दिल से दुआ
मनु,मनोज, आशीष, सुधीर,
चनदर, लाल सदा रहो प्रसन्न

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दूजे भी मेरे भ्राता गण
सोनी, मुकेश, हरीश, सोनू,
महेश, दीपक व कमल
आज है पर्व तुम्हारा भैया
तुम जीयो हज़ारों वर्ष तक
हम सब बहनों की है दुआ

सिकीलधी
18/8/15

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